सुरहुत्ती तिहार

हमर हिन्दू समाज मा तिहार बहार हा सबके जिनगी मा बड़ महत्तम रखथे। पुरखा के बनाय रीति रिवाज अउ परम्परा हा आज तिहार के रुप रंग मा हमर संग हावय। अइसने एकठन तिहार हे जौन हा हिन्दू समाज मा अब्बड़ महत्तम के हावय जेला धनतेरस के तिहार कहीथन। हमर हिन्दू मन के सबले बड़े तिहार देवारी के दू दिन पहिली मनाय जाथे धनतेरस के तिहार जेला सुरहुत्ती घलाव कहे जाथे। ए सुरहुत्ती तिहार जौन हा धनतेरस के नाँव ले जग प्रसिद्ध हे एखर पाछू अलग-अलग मानियता हे।
देवता अउ दानव मन के समुंदर के मथे ले जइसे लछमी देवी निकले रहीस हे ठीक वइसने जग के सबले बड़े बइद भगवान धनंवतरी हा घलाव इही दिन समुंदर ले निकले रहीन। धनवंतरी हा समुंदर ले अपन हाथ मा अमरित कलश धरके अवतरित होय रहीन। देवी लछमी हा धन के देवी हे फेर लछमी के किरपा पाय बर हमन ला स्वस्थ अउ लंबा उमर घलाव चाही। धन ले बड़े सुग्घर स्वस्थ तन के देवइया महाबइद धनवंतरी हा हरय। एखरे सेती धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी के पूजा अराधना करे ले निरोग होय के वरदान मिलथे।
कारतिक महीना के अंधियारी पाख के तेरा दिन मा भगवान धनवंतरी के जनम हा होय रहीस तेखर सेती ए दिन ला धनतेरस के नाँव ले जाने जाथे। धनवंतरी हा जब समुंदर ले अवतरे रहीस ता उँखर हाथ मा अमरित ले भरे कलश रहीस हे। धनवंतरी हाथ मा कलश धरे प्रगट होय रहीस एखर सेती ए दिन बरतन खरीदे के मानियता हे। लोक मानियता के हिसाब ले धनतेरस के दिन कुछू बरतन या धन खरीदे ले वोमा तेरा गुना बाढ़ होथे। कहूँ-कहूँ धनतेरस के दिन धनिया के बीजा ला बिसा के घर मा राखथे अउ देवारी मनाय के बाद मा अपन खेत-खार मा बोथें। धनतेरस के दिन चाँदी बिसाय के घलो सुग्घर परथा हावय। जौन चाँदी नइ बिसाय सकँय तौन मन हा काँहीं बरतन बिसा सकथें। अइसन एखर सेती के चाँदी हा चंदा के प्रतीक हरय जौन हा शीतलता प्रदान करथे अउ मन मा संतोष धन के वास लाथे। संतोष धन ला संसार के सबले बड़े धन होथे, जेखर तीर मा संतोष हे वो हा स्वस्थ हे, सुखी हे। ए वरदान सबले बड़े धन वाला भगवान धनवंतरी के पूजा-अरचना करके माँगे जाथे। धनतेरस के दिन पूजा पाठ करे बर नवा बरतन बिसाथें।.इही दिन बैपारी मन घलाव अपन नवा बही खाता के सुरुवात पूजा-पाठ करके करथे।
सुरहुत्ती के दिन संझा बेरा मा घर के बाहर सिंग दरवाजा मा अउ अँगना मा दीया बारे के परथा हावय। ए परथा के पाछू मा एकठन लोक कथा प्रचलित हावय। ए कथा के हिसाब ले कोन्हो प्रीचीन समय मा हेम नाँव के राजा रहीस। देवता मन के आसीरबाद ले राजा के घर बड़ दिन मा एक झन बेटा पइदा होइस। राजा अपन लइका के कुण्डली बनवाइच ता जान डारीस के जौन दिन लइका के बिहाव होही ओखर चार दिन पाछू लइका के मउत हो जाही। ए बात ला जान के राजा हा बड़ दुखी होइच अउ अपन बेटा ला अइसन जगा भेज दीस जिहाँ कोनो नारी परानी के छँइहाँ घलाव झन परय। देव किरपा ले एक दिन दुसर राज के एक राजकुमारी उही जगा ले गीस ता दुनो झन एक दुसर उपर मोहागे अउ तुरते गंधर्व बिहाव कर डारीन। फेर बिहाव के पाछू बिधि के बिधान हा आगू मा आगे। बिहाव के चार दिन पाछू राजकुमार के परान ला हरे बर यमदूत हा आगीस। जउन बेरा मा यमदूत मन राजकुमार के परान ले बर जावत रहीन उही बेरा मा राजकुमार के सुवारी के छाती पीट-पीट के रोवई ला देखीन ता उँखर हिरदे हा दुख ले भरगे। बिधि के बिधान ला दुख भरे मन ले यमदूत मन हा पूरा करीन। यमदूत मन यम देवता यमराज ले राजकुमार जइसन कोनो भी ला अकाल मउत ला बाँचे के कोनो उपाय पूछीस। ता यमराज हा एकठन उपाय के रुप मा बताइस के कारतिक महीना के अंधियारी पाख के तेरा दिन के रतिहा यमराज के नाँव ले पूजा-पाठ करके एकठन दीया दक्षिण दिशा मा बारही ता वोला अकाल मउत के डर-भय नइ राहय। एखर सेती धनतेरस के दिन लोगन मन हा घर के बाहिर दक्षिण दिशा मा दीया बार के राखथें। ए मानियता ले धनतेरस के रतिहा (संझा) अपन अँगना मा यम देवता यमराज के नाँव मा दीया बार के अउ कतको झन मा यमराज के नाँव ले के उपास घलाव रहीथें।




धनवंतरी भगवान हा विष्णुजी के अंश अवतार घलाव हरय। धनवंतरी हा देवता मन के बइद अउ डाक्टर रहीन। एखरे सेती हमर देशभर के डाक्टर अउ बइद मन बर धनतेरस के दिन हा बड़ महत्तम राखथे। लोगन मन हा घलो धनतेरस के दिन तेरा ठन दीया अपन अँगना मा बार के भगवान धनवंतरी के पूजा-अरचना करथे अउ सुग्घर सेहत के वरदान माँगथें। धनतेरस के दिन धनवंतरी के संगे संग धन के देवता कुबेर अउ धन के देवी लछमी के घलाव पूजा-पाठ करे जाथे। अइसन करे ले मनखे के जिनगी मा कभू धन-दोगानी के कमी नइ होवय। धनतेरस के दिन बजार ले कुछू ना कुछू जीनिस खरीदे के परथा हावय, बिसेस करके बरतन अउ गहना के खरीदी ला शुभ माने गे हे। पीतल के बरतन खरीदी ला जादा शुभ माने जाथे। चाँदी के बरतन या फेर गनेश लछमी छपे चाँदी के सिक्का घलाव धनतेरस के दिन खरीदना चाही। चाँदी के जगा मा कोनो भी नवा जीनिस ए दिन खरीदना शुभ माने जाथे। ए प्रकार ले धनतेरस के तिहार हा हमर हिन्दू समाज मा वैभव, खुशी, अउ उछाह के तिहार के रुप मा इस्थापित हावय।
धनतेरस के दिन घर अँगना के सजावट हा सुरु हो जाथे। देवारी के दीया धनतेरस के दिन ले बरे के सुरु हो जाथे। एक प्रकार ले देवारी तिहार के सुरुवात हो जाथे एखर सेती धनतेरस के नाँव सुरहुत्ती घलाव हावय। धनतेरस हा देवारी के दुवारी आय। हमर देश मा सबो जात समाज मा सबले जादा उछाह अउ उमंग के तिहार देवारी हा कहाथे अउ ए देवारी के श्रीगणेश सुरुहुत्ती ले सुरु हो जाथे। घर-अँगना, दुवार के साफ-सफाई, लीप बहार के, चउँक पुर के रंगोली पार के फूल माला, तोरन, नरियर, गुलाल, बताशा, लाई ला थारी मा सजा के संझा के बेरा अँगना मा रिगबिग दीया बार के धनतेरस के तिहार मनाय जाथे। धनतेरस के दिन कोन्हो हा कोन्हो ला अपन काँहीं जीनिस ला मंगनी मा उधार नइ देवँय। ए दिन हा धन-दोगानी घर मा आय के सबले सुग्घर सरेस्ठ दिन हरय। ओरी ओर चारो खूँट रिगबिग रिगबिग माटी के दीया ए तिहार मा सोन संग सोहागा कस लागथे। घर-अँगना, दुवारी, कोठी-डोली, बारी-बियारा, खेत-खार कुआँ-बावली, नदिया-तरिया, मंदिर-देवाला, गौशाला-धर्मशाला अउ जम्मो जगा दीया के अँजोर मा चुकचुक ले दिखथे। ए तिहार हा सरी मनखे के जिनगी मा खुशी अउ उछाह के अँजोर बगराथे। धन ले जादा तन के सुग्घर समरिद्धी बर जप तप के परब ए सुरहुत्ती तिहार हा हरय। तन के सुघरई अउ सुवास्थ खातिर अपन तीर तखार के सफई, कचरा, जाला के सफई ए तिहार हा सबला सिखोथे। बिन साफ सफाई कखरो नइ हे भलाई। सिरतोन मा तिहार के आनंद लेना हे ता तन ले जादा मन के मइल ला सफई करना चाही। तिहार पोगरी खुशी के नाँव नो हे ए जुरमिल के मिलबाँट के मनाय मा जादा सार्थक हे। तिहार हा हमला करम करे सीख देथे आलस ला तियाग करे ला कथे। जौन हा ए करम सोलाआना करही तेखर जिनगी मा रोजेच तिहार होही।

कन्हैया साहू “अमित”
शिक्षक-भाटापारा(छ.ग)
संपर्क~9753322055



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